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नारायण यज्ञ विधान

आचार्य
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यह यज्ञ विधि विधान का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि यह कई दिनों तक चलता है। इस चरण में, पुजारी लगातार मंत्रों का जाप करते हैं और भगवान की स्तुति और उन्हें प्रसन्न करने के उद्देश्य से हवन कुंड में आहुति देते हैं। यज्ञ आहुति मंत्र जाप लंबे समय तक चलता है।
**नारायण यज्ञ** एक विशेष यज्ञ है, जिसे भगवान नारायण (विष्णु) की उपासना के लिए किया जाता है। यह यज्ञ समृद्धि, शांति और जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए आयोजित किया जाता है। यहाँ नारायण यज्ञ के विधान और प्रक्रिया का विवरण दिया गया है:

### नारायण यज्ञ का विधान

1. **सामग्री का संग्रह**:
   - यज्ञ के लिए आवश्यक सामग्री जैसे हवन सामग्री, गंध, फूल, फल, अनाज, घी, और विशेष पूजन सामग्री एकत्र की जाती है।

2. **यज्ञ मंडप की तैयारी**:
   - एक पवित्र स्थान पर यज्ञ मंडप की स्थापना की जाती है। मंडप को स्वच्छता और पवित्रता के साथ सजाया जाता है।

3. **पुजारी का चयन**:
   - योग्य पुजारी का चयन किया जाता है, जो यज्ञ की विधि को सही तरीके से संपन्न कर सके। वह मंत्रों का सही उच्चारण और अनुष्ठान को संपन्न करने में सक्षम होना चाहिए।

4. **नवग्रह पूजन**:
   - यज्ञ की शुरुआत से पहले नवग्रह (ग्रहों) का पूजन किया जाता है, ताकि ग्रहों की कृपा प्राप्त हो सके।

5. **यज्ञ का आरंभ**:
   - यज्ञ का आरंभ 'ॐ' के उच्चारण से होता है। इसके बाद यज्ञ के विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।

6. **भगवान नारायण की स्तुति**:
   - नारायण यज्ञ के दौरान विशेष रूप से भगवान नारायण की स्तुति की जाती है। इसके लिए उपयुक्त श्लोक और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जैसे "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"।

7. **आहुति का प्रावधान**:
   - यज्ञ के दौरान अग्नि को आहुति दी जाती है। इसमें विशेष सामग्री जैसे घी और अन्न को अग्नि में अर्पित किया जाता है, साथ ही मंत्रों का जाप किया जाता है।

8. **अभिषेक और प्रसाद**:
   - यज्ञ संपन्न होने के बाद भगवान नारायण का अभिषेक किया जाता है। यज्ञ के अंत में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया जाता है।

9. **आरती और समापन**:
   - यज्ञ के अंत में भगवान की आरती की जाती है। इसके बाद यज्ञ का समापन किया जाता है और सभी उपस्थित लोगों को यज्ञ का फल प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है।

### निष्कर्ष

नारायण यज्ञ एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और शांति लाने के लिए किया जाता है। यह यज्ञ न केवल भगवान नारायण की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि यह भक्तों के बीच सामुदायिक बंधन को भी मजबूत करता है।