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ऋग्वेद संहिता

आचार्य
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ऋग्वेद की संहिता का महत्त्व सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय का प्राचीनतम ग्रन्थ होने के कारण इस (शाकल) संहिता को विश्वसाहित्य का प्रथम ग्रन्थ होने का गौरव प्राप्त है। चारों वेदों की संहिताओं की तुलना में यह सबसे बड़ी संहिता है। एक विशालकाय वैदिक ग्रन्थ के रूप में यह अद्भुत और विविध अनंत ज्ञान का स्रोत है।
**ऋग्वेद** की संहिता, वैदिक साहित्य का प्राचीनतम ग्रंथ है और इसे विश्व साहित्य का प्रथम ग्रंथ मानने का गौरव प्राप्त है। इसके महत्व के कई पहलू हैं:

### ऋग्वेद की विशेषताएँ

1. **प्राचीनता**:
   - ऋग्वेद सबसे पहले लिखा गया वेद है, जो वेदों की समस्त परंपरा का आधार है। इसका समय लगभग 1500 ईसा पूर्व माना जाता है, जिससे यह मानव इतिहास के प्रारंभिक चरणों का द्योतक है।

2. **विविधता और गहराई**:
   - यह संहिता अद्भुत और विविध ज्ञान का स्रोत है, जिसमें धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है। इसके श्लोकों में जीवन के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख मिलता है।

3. **मंत्रों का संग्रह**:
   - ऋग्वेद में 1,028 मंत्र हैं, जो विभिन्न देवताओं की स्तुति, यज्ञों के अनुष्ठान और अन्य धार्मिक क्रियाओं के लिए उपयोगी होते हैं। ये मंत्र प्राचीन भारतीय समाज की धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को दर्शाते हैं।

4. **वैदिक संस्कृति का प्रतिबिंब**:
   - ऋग्वेद वैदिक संस्कृति का सार है। इसमें वर्णित यज्ञ, अनुष्ठान और देवताओं की उपासना उस समय की सामाजिक संरचना और जीवनशैली को स्पष्ट करते हैं।

5. **भाषा और काव्य**:
   - ऋग्वेद की भाषा संस्कृत की प्राचीनतम रूपों में से एक है। इसके काव्यात्मक गुण और गूढ़ता इसे साहित्यिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।

### निष्कर्ष

ऋग्वेद की संहिता न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास में भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इसके ज्ञान और शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और आधुनिक समाज में भी उनकी गहरी छाप है। यह ग्रंथ भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य हिस्सा है।