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विवाह संस्कार

आचार्य
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विवाह संस्कार, हिंदू धर्म में एक अहम संस्कार है. यह एक पवित्र बंधन माना जाता है. विवाह संस्कार से जुड़ी कुछ खास बातेंः विवाह संस्कार, गृहस्थाश्रम की शुरुआत का प्रतीक है. विवाह संस्कार के बाद से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है. विवाह संस्कार के ज़रिए वर-वधू का आपस में मिलन होता है. विवाह संस्कार के बाद से दंपति धर्मपालन करते हैं. विवाह संस्कार के बाद से दंपति के जीवन में यज्ञ, पूजा, अतिथियों की सेवा वगैरह की शुरुआत होती है. विवाह संस्कार से कुटुंब व्यवस्था मज़बूत होती है और समाज और राष्ट्र की व्यवस्था भी बेहतर होती है. विवाह संस्कार से पहले के संस्कार व्यक्ति को सर्वांगपूर्ण बनाने में मदद करते हैं. विवाह संस्कार को समावर्तन संस्कार के बाद किया जाता है. विवाह संस्कार में पवित्रीकरण, आचमन, शिखा-वंदन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी-पूजन जैसे कर्मकांड किए जाते हैं. शास्त्रों के मुताबिक, विवाह आठ तरह के होते हैं: ब्रह्म, दैव, आर्य, प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस, पिशा.
**विवाह संस्कार** हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण और पवित्र प्रक्रिया है, जो न केवल दो व्यक्तियों के बीच बंधन स्थापित करती है, बल्कि समाज और परिवार के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहाँ विवाह संस्कार से जुड़ी कुछ विशेष बातें प्रस्तुत की गई हैं:

### विवाह संस्कार का महत्व

1. **गृहस्थाश्रम की शुरुआत**: विवाह संस्कार को गृहस्थाश्रम का आरंभ माना जाता है। यह व्यक्ति के जीवन में एक नई दिशा और जिम्मेदारियों का आगमन करता है।

2. **पितृऋण से मुक्ति**: विवाह संस्कार के बाद व्यक्ति अपने पितृऋण से मुक्त हो जाता है। यह मान्यता है कि विवाह के द्वारा व्यक्ति अपने पूर्वजों का ऋण चुकता करता है।

3. **वर-वधू का मिलन**: इस संस्कार के माध्यम से वर और वधू का मिलन होता है, जिससे वे एक दूसरे के जीवनसाथी बनते हैं और मिलकर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।

4. **धर्मपालन**: विवाह के बाद दंपति को धर्मपालन करने का अवसर मिलता है। वे साथ मिलकर यज्ञ, पूजा, और सामाजिक कार्यों में संलग्न होते हैं।

5. **कुटुंब व्यवस्था**: विवाह संस्कार से कुटुंब व्यवस्था मजबूत होती है, जो समाज और राष्ट्र की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

6. **पूर्व संस्कारों का महत्व**: विवाह संस्कार से पहले के संस्कार व्यक्ति के सर्वांगपूर्ण विकास में सहायक होते हैं, जो उन्हें विवाह के लिए तैयार करते हैं।

### विवाह संस्कार की प्रक्रिया

- विवाह संस्कार को समावर्तन संस्कार के बाद किया जाता है। इसमें कई कर्मकांड शामिल होते हैं, जैसे:
  - **पवित्रीकरण**: शुद्धता का प्रतीक।
  - **आचमन**: मन और आत्मा को शुद्ध करने का कार्य।
  - **शिखा-वंदन**: श्रद्धा के साथ शिखा बांधना।
  - **प्राणायाम**: मानसिक शांति के लिए।
  - **न्यास**: भगवान का स्मरण।
  - **पृथ्वी-पूजन**: भूमि की पूजा करना।

### विवाह के प्रकार

शास्त्रों के अनुसार विवाह के आठ प्रकार होते हैं:

1. **ब्रह्म विवाह**: शास्त्रों के अनुसार योग्य वर-वधू का विवाह।
2. **दैव विवाह**: माता-पिता द्वारा स्वीकृत विवाह।
3. **आर्य विवाह**: समान धर्म के व्यक्तियों का विवाह।
4. **प्राजापत्य विवाह**: परिवार के सदस्यों का विवाह।
5. **असुर विवाह**: धन के बल पर किया गया विवाह।
6. **गंधर्व विवाह**: प्रेम से किया गया विवाह।
7. **राक्षस विवाह**: बलात्कारी विवाह।
8. **पिशाच विवाह**: अपशब्द या अमानवीय तरीके से किया गया विवाह।

### निष्कर्ष

विवाह संस्कार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है, जो जीवन की महत्वपूर्ण धारा को निर्धारित करती है। यह न केवल दंपति के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक स्थायी आधार प्रदान करता है।