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वैदिक संध्या

आचार्य
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यस्यां सा सन्ध्या” [पञ्चमहायज्ञ विधि] = भलीभांति ध्यान करते हैं, अथवा ध्यान किया जाये परमेश्वर का जिसमें, वह क्रिया सन्ध्या है।
“यस्यां सा सन्ध्या” का अर्थ है कि जो क्रिया ध्यान से संबंधित है, वही सन्ध्या है। सन्ध्या का अर्थ केवल एक विधि नहीं है, बल्कि यह ध्यान और उपासना का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। 

### सन्ध्या
सन्ध्या का अभिप्राय विशेष समय में ध्यान और प्रार्थना करना है, जिसमें व्यक्ति परमेश्वर का ध्यान करता है। इसे संध्या वंदन भी कहते हैं, जो सुबह, दोपहर और शाम के समय किया जाता है। इस क्रिया के माध्यम से व्यक्ति अपने मन और आत्मा को शुद्ध करता है और ईश्वर के प्रति समर्पण प्रकट करता है।

### उपासना
उपासना का अर्थ है ईश्वर की आराधना और सेवा करना। उपासना करते समय, व्यक्ति अपने मन को ईश्वर की भक्ति में लिप्त करता है और उसके आनंदस्वरूप में मग्न होता है। यह केवल भक्ति का कार्य नहीं है, बल्कि यह आत्मा के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करने का प्रयास है।

इन दोनों प्रक्रियाओं का उद्देश्य आत्मा की शुद्धता, मानसिक संतुलन और परमात्मा के साथ एकात्मता की प्राप्ति है। सन्ध्या और उपासना से मन को शांति मिलती है और व्यक्ति अपने जीवन को एक नई दिशा में अग्रसर कर सकता है।